-रामनरेश त्रिपाठी
चंदामामा गए कचहरी
घर में रहा न कोई
मामी निशा अकेली घर में
कब तक रहतीं सोई।
चली घूमने साथ न लेकर
कोई सखी सहेली
देखी उसने सजी सजाई
सुन्दर एक हवेली।
आगे सुन्दर पीछे सुन्दर
सुन्दर दाएँ बाएँ
नीचे सुन्दरे ऊपर सुन्दर
सुन्दर सभी दिशाएँ।
देख हवेली की सुन्दरता
फूली नहीं समाई
आओ नाचें, उसके मन में
यह तरंग उठ आई।
पहले वह सागर पर नाची
फिर नाची जंगल में
नदियों पर नालों पर नाची
पेड़ों की ओझल में।
फिर पहाड़ पर चढ़ चुपके से
वह चोटी पर नाची
चोटी से उस बड़े महल की
छत पर जाकर नाची।
वह थी ऐसी मस्त हो रही
आगे क्या गति होती
टूट न जाता तार कहीं जो
बिखर न जाते मोती
छूट गया नौलखा हार जब
मामी रानी रोती
वहीं खड़ी रह गई छोड़कर
यों ही बिखरे मोती।
पाकर हाल दूसरे ही दिन
चंदामामा आए
कुछ शरमाकर खड़ी हो गई
मामी मुँह लटकाए।
चंदामामा बहुत भले हैं
बोले क्यों है रोती
दीया लेकर घर से निकले
चले बीनने मोती ।
दीया लेकर घर से निकले
ReplyDeleteचले बीनने मोती ।
bahut sundar
Sunder Rachna
ReplyDeleteVarishth Sahitykaron ki Rachnao ko prastut kar Dr.Jagdish Vyom ji sarahniy kary kar rahe hai. Sadhubad.
ReplyDeleteधन्यवाद डा० पाठक जी
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