Sunday 10 July 2011

ओ री चिड़िया

 -कृष्ण शलभ
जहाँ कहूँ मैं, बोल, बता दे
क्या जाएगी, ओ री चिड़िया
उड़ करके क्या चन्दा के घर
हो आएगी, ओ री चिड़िया।

चन्दा मामा के घर जाना
वहाँ पूछ कर इतना आना
आ करके सच-सच बतलाना
कब होगा धरती पर आना
कब जाएगी, बोल लौट कर
कब आएगी, ओ री चिड़िया
उड़ करके क्या चन्दा के घर
हो आएगी, ओ री चिड़िया।

पास देख सूरज के जाना
जा कर कुछ थोड़ा सुस्ताना
दुबकी रहती धूप रात-भर
कहाँ? पूछना, मत घबराना
सूरज से किरणों का बटुआ
कब लाएगी, ओ री चिड़िया
उड़ करके क्या चन्दा के घर
हो आएगी, ओ री चिड़िया।

चुन-चुन-चुन-चुन गाते गाना
पास बादलों के हो आना
हाँ, इतना पानी ले आना
उग जाए खेतों में दाना
उगा न दाना, बोल बता फिर
क्या खाएगी, ओ री चिड़िया
उड़ करके क्या चन्दा के घर
हो आएगी, ओ री चिड़िया।

1 comment:

  1. कृष्‍ण शलभी जी का जवाब नहीं। वे सचमुच बहुत प्‍यारा लिखते हैं।

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