Monday 27 June 2011

सगुनी का सपना ( बाल कहानी )

-डॉ0 जगदीश व्योम

    राजस्थान के पश्चिमी इलाके में एक स्थान है सूरतगढ़ ईप्सा के पापा का स्थानांतरण यहीं के केन्द्रीय कृषि फार्म में हुआ है ईप्सा को यहां के केन्द्रीय विद्यालय में प्रवेश मिल गया।  ईप्सा कक्षा पांच की छात्रा है दो-चार दिन तो  ईप्सा की कक्षा की लड़कियां उससे दूर-दूर रहीं लेकिन बाद में उससे दोस्ती हो गयी लड़कियों ने ही ईप्सा को बताया कि वह अपने टिफिन की सुरक्षा करे। कोई बच्चा खाना चुरा कर खा जाता है कभी किसी का खाना गायब हो जाता है तो कभी किसी का। बच्चे इस ताक में रहते हैं कि खाना चोर को रंगे हाथ पकड़ा जाये।
      मैले -कुचैले   कपड़े पहने एक छोटी सी लड़की विद्यालय के तारों की बाउन्ड्री के पास   घूमती रहती है। बच्चों ने अनुमान लगाया कि यही खाना चुराती होगी। बच्चों ने अपनी कक्षा की खिड़की में से उसे दूर से कक्षा की ओर टक-टकी लगाकर देखते हुए देखा है। कई बार  बच्चों ने उसे पकड़ने  की कोशिश की तो वह भाग गई।
    एक दिन इन्टरवेल में सभी बच्चे अपनी-अपनी कक्षा से बाहर आकर खेल रहे थे। कुछ अपने दोस्तों के साथ खाना खा रहे थे तभी तारों की बान्उड्री के पास बने कूड़ेदान की दीवार से सटी बच्चों की भीड़ को ललचाई दृष्टि से देख रही उस लड़की को किसी बच्चे ने देख लिया। चार-पांच बच्चे हाथों में पत्थर लेकर उस लड़की तरफ दौड़े । बच्चों को अपनी तरफ दौड़ते हुए देख वह भागने को हुई तभी रोहित ने  एक पत्थर उस लड़की की ओर फेंका जो उसके माथे पर लगा। पत्थर लगते ही खून का फब्बारा छूटा और वह लड़की बेहोश होकर वहीं गिर पड़ी।
    बच्चों की भीड़ जमा हो गई ईप्सा ने  जब भीड़ लगते देखी तो वह भी अपनी  सहेलियों के साथ वहां पहुंच गई।
    ”खाना चोर पकड़ी गई..........खाना चोर पकड़ी गई.............” - बच्चे जोर-जोर से चिल्ला रहे थे। लड़की बेहोश पड़ी थी और उसके माथे से खून निकल कर बह रहा था। बच्चे खुश हो रहे थे।   ईप्सा ने जब यह दृश्य देखा तो उससे न रहा गया। जल्दी से वह उस घायल लड़की के पास पहुंच गई उसने अपने रूमाल से उसका माथा कस कर बांध दिया  और अपनी सहेलियों रानी, दक्षा, अंशु, और गीता से कहा आओ! हम सब मिल कर एम0आई0रूम ले चलते हैं।
    गीता बोली ” ईप्सा यह तो खाना़ चोर लड़की है मुश्किल ये पकड़ी गई और तुम कहती हो कि इसे एम0 आई0 रूम ले चलो ?”
    ”गीता यह लड़की खानाचोर है या नहीं यह बाद में तय होता रहेगा अभी इसकी जान खतरे में है इस लिए इसे तुरंत डॉक्टर के पास ले चलते हैं तुम सब इसे ले चलने में मेरी सहायता करो इसका खून इसी तरह बहता रहा तो यह बेचारी मर जायेगी।”
             बच्चों की भीड़ खून देख कर वहाँ से खिसकने लगी थी । ईप्सा अपनी सहेलियों की सहायता से उस लड़की को डाँक्टर के पास लेकर पहुची । डाक्टर ने उसे तुरन्त इन्जेक्शन दिया । उसके माथे का घाव साफ किया । माथा काफी फट गया था इसलिए डाक्टर को तीन चार टाँके लगाने पड़े । डाक्टर ने जब तक उसका उपचार किया तब तक ईप्सा अपनी सहेलियों के साथ वहीं बैठी रही । डॅाक्टर ने ईप्सा से कहा  - ‘‘ ईप्सा तुम इसे शीघ्र मेरे पास न ले आतीं तो इस गरीब लड़की के जीवन को खतरा हो सकता था । अब यह बिलकुल ठीक है । मैने इसे दबा दे दी है। एक सप्ताह में इसका धाव ठीक हो जाएगा ।   
           ईप्सा उस लड़की को देखने प्रतिदिन अस्पताल के एम.आई.रूम में जाती । वह लड़की हाथ जोड़कर बार बार कहती कि ‘‘ मैंने कभी खाना नहीं चुराया । मैं चोर नहीं हूँ । ’’
    ‘‘ अगर तुम चोर नहीं हो तो फिर कक्षा के पास खड़े होकर क्या देखती रहती हो? और बुलाने पर भाग जाती हो । सच-सच बताओ आखिर तुम कौन हो और क्यों रोज आती रही हो?” - ईप्सा ने उस लड़की से पूछा ।
     ,,  दीदी मेरे बापू बहुत गरीब हैं। पास के गांव में रहते हैं। मुझे कूड़ा-कचरा, बोतलें, मोमियाँ, आदि बीनने के लिए यहाँ बापू भेजते हैं। मेरा मन कूड़ा-कचरा बीनने में नहीं लगता मुझे आप सब बहुत अच्छे लगते हो मेरी भी इच्छा हैं कि मैं भी पढूं, , आप जैसी ड्रेस पहनूं, बैग लेकर स्कूल आऊं और कुर्सी पर बैठूँ।  आप सब को पढ़ते, खेलते देखकर मुझे बहुत सुख मिलता है। इसलिए मैं तारों के पास खड़ी होकर देखती रहती। मैंने चोरी कभी नहीं की।” - लड़की कहते-कहते सपनों में खो गई।
    ”फिर तुम भाग क्यों जाती थी?” -ईप्सा ने पूछा।
    ”मैं डर जाती थी कि मुझे आप लोग पकड़कर मारेंगे। इसलिए किसी को अपनी ओर आते देखकर मैं भाग जाती थी। . . .  . दीदी  इस बार आपने मुझे बचा लिया अब मैं कभी नहीं आऊंगी. . . . मुझे क्षमा कर दो ईप्सा दीदी।” - कहते-कहते लड़की सुबक-सुबक कर रोने लगी।
    ”अरे तुम तो रोने लगी। . . . . अच्छा तुम्हारा नाम क्या है?”-ईप्सा ने पूछा
    ”सगुनी , सुगनी है मेरा नाम” - लड़की ने कहा।
    ”तुम्हें जब स्कूल इतना अच्छा लगता है तो फिर एडमीशन क्यों नहीं करवा लेती हो अपने बापू से कह कर” - ईप्सा ने सगुनी से कहा ।
    ” हुं  हँ! मुझे कौन एडमीशन देगा दीदी ! हम लोग गरीब हैं न, मेरे बापू के पास पैसे नहीं हैं कि किताबें खरीद सकें और कपड़े बनवा सकें।” -सगुनी ने उदास मन से कहा।
    ”अच्छा ! सगुनी तुम्हारे लिए किताबें मैं ला दूंगी मेरी सभी किताबें रखीं है उनसे तुम पढ़ लेना।” अंशु बोली। दक्षा कहने लगी कि सगुनी के लिए ड्रेस मैं बनवा दूंगी अपने पापा से कह कर।
    डॉंक्टर अजय इन छात्राओं से पहले ही प्रभावित हो चुके थे इनकी बातें सुनी तो वे अपनी कुर्सी से उठकर लड़कियों के पास आ कर खड़े हो गये। ईप्सा की पीठ थपथपाते हुऐ बोले  ईप्सा तुम तो बहुत अच्छी बेटी हो। सगुनी को तुम लोग पढ़ाना चाहती हो यह बहुत अच्छी बात है। जब तुम लोग ड्रेस और किताबों की व्यवस्था कर रही हो तो फिर सगुनी के एडमीशन का तथा शेष खर्चों का जिम्मा मैं लेता हूं।” -डॉक्टर अजय की बात सुन कर लड़कियां खुशी से झूम उठीं सगुनी के  चेहरे पर खुशी छा गई उसे विश्वास नहीं हो पा रहा था कि वह भी केन्द्रीय विद्यालय में पढ़ सकेगी।
    डॉक्टर अजय ने कहा, ”सगुनी जैसी अनेक बालिकाएँ हैं जो पढ़ना चाहती हैं पर अभाव के कारण पढ़ने से वंचित रह जाती हैं। और हम सब बड़े लोग इन्हें उपेक्षा और घृणा की दृष्टि से देखते रहते हैं। हम कुत्तों को तो अपनी कारों में घुमाने के लिए लालायित रहते हैं पर सगुनी जैसी बच्चियों की थोड़ी सी सहायता करने में कतराते हैं।  ईप्सा तुमने और तुम्हारी सहेलियों ने सगुनी के बारे में जो सोचा है उसे पूरा करने मैं पूरी सहायता करूंगा”
    ईप्सा को महसूस हो रहा था कि उसने वास्तव में कुछ अच्छा कार्य किया है। डॉक्टर अजय ने अपनी देख -रेख में सगुनी का एडमीशन करा दिया। सगुनी नई डेªस पहनकर विद्यालय आयी तो उसे लग रहा था कि दुनिया भर की खुशी उसे मिल गई है।
    स्कूल ड्रेस में सजी धजी सी सगुनी प्रार्थना सभा में सावधान विश्राम करते देखकर ईप्सा की आंखों में खुशी के आंसू छलछला आये। ईप्सा सोच रही थी उस जैसे छोटे बच्चे भी किसी सगुनी के सपनों को साकार करने में उसकी सहायता कर सकते हैं। ईप्सा के रोम रोम से खुशी झलक रही थी।

2 comments:

  1. प्यारा लगा आपका ब्लॉग ........बहुत सुंदर कहानी....

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  2. 7-8 mah pahale prakashit is kahani par ya kahun is blog par aaj najar padi .achchi kahani hai .lekhak ka nam bhi naya nahi hai ,badhi .bachcho ke is blog par bhi najar dalen
    http://bal-kishor.blogspot.com/

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