सूरज जी,
तुम इतनी जल्दी क्यों आ जाते हो?और न कोई काम तुम्हें
ज़रा नहीं भाता क्या मेरा
बिस्तर पर आराम तुम्हें
ख़ुद तो जल्दी उठते ही हो‚
मुझे उठाते हो
सूरज जी ,
तुम इतनी जल्दी क्यों आ जाते हो ?
कब सोते हो‚ कब उठ जाते
कहाँ नहाते-धोते हो ?
तुम तैयार बताओ हमको
कैसे झटपट होते हो ?
लाते नहीं टिफ़िन‚
क्या खाना खाकर आते हो
सूरज जी !
तुम इतनी जल्दी क्यों आ जाते हो ?
रविवार आफ़िस बन्द रहता
मंगल को बाज़ार भी
कभी-कभी छुट्टी कर लेता
पापा का अख़बार भी
ये क्या बात‚
तुम्हीं बस छुट्टी नहीं मनाते हो !
सूरज जी !
तुम इतनी जल्दी क्यों आ जाते हो ?
-कृष्ण शलभ
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